श्रीकृष्ण जैसे मित्र के रहते सुदामा गरीब हो ही नहीं सकते -डाॅ अरुणाचार्य महाराज

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शहडोल/बंगवार (Ravi tripathi)
शहडोल के कोयलांचल में ग्राम बेम्हौरी स्थित ज्वालामुखी मंदिर प्रांगण में बीते 18 दिसम्बर से श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है, जिसका समापन रविवार को श्रीकृष्ण सुदाम चरित्र और परीक्षित मोक्ष के साथ संपन्न हुआ आज भण्डारा और ब्राम्हण भोजन का कार्यक्रम रखा गया है।

भागवत कथा के अंतिम दिन ज्वालामुखी मंदिर प्रांगण मे कथा का रसपान पाने के लिए भक्तों का सैलाब कथा स्थल पर उमड़ पड़ा। कथावाचक डॉ अरुणाचार्य महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा का समापन करते हुए कई कथाओं का भक्तों को श्रवण कराया, जिसमें श्रीकृष्ण के 16108 शादियों के प्रसंग के साथ, सुदामा प्रसंग और परीक्षित मोक्ष की कथाएं सुनाई। उन्होंने बताया सुदामा जी के पास कृष्ण नाम का धन था। संसार की दृष्टि में गरीब तो थे, लेकिन दरिद्र नहीं थे। अपने जीवन में किसी से कुछ मांगा नहीं। पत्नी सुशीला के बार-बार कहने पर सुदामा अपने मित्र कृष्ण से मिलने गए। भगवान के पास जाकर भी कुछ नहीं मांगा। भगवान अपने स्तर से सब कुछ दे देते हैं। सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने दोस्ती की मिसाल पेश की और समाज में समानता का संदेश दिया। इसके उपरांत दत्तात्रेय जी के चौबीस गुरुओं के बारे में बताया। कथा समापन के दौरान डॉ अरुणाचार्य महाराज ने भक्तों को भागवत को अपने जीवन में उतारने की बात कही, जिससे सभी लोग धर्म की ओर अग्रसर हों। साथ ही भक्तों को बताया कि श्रीमद्भागवत कथा का सात दिनों तक श्रवण करने से जीव का उद्धार हो जाता है, तो वहीं इसे करवाने वाले भी पुण्य के भागी होते है।

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