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वन निगम और SECL सोहागपुर प्रबंधन की मिलीभगत ने प्रभावित किया पर्यावरण को (अब आनन-फानन मे नियम विरुद्ध वृक्षारोपण)

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शहडोल/धनपुरी (रवि त्रिपाठी)

एसईसीएल सोहागपुर क्षेत्र के बंगवार-बेम्हौरी क्षेत्र में बेम्हौरी से बंगवार मार्ग के एक तरफ जहां अमलाई ओसीएम चला करती थी वहां कोयला खनन कार्य पूरा होने के बाद भी समतलीकरण नहीं किया जा रहा। जिसकी शिकायत बीते महीने प्रधानमंत्री कार्यालय और पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार से की गई थी जिसके बाद मंत्रालय के अंडर सेक्रेटरी ने 20 अप्रैल को पत्र क्रमांक 654179/2022/IA जारी करते हुए डीजीएमएस, रेवेन्यू वोर्ड मध्य प्रदेश, एसईसीएल और जिला मजिस्ट्रेट शहडोल को जल्द से जल्द जांच करने के आदेश दिएं। जिसपर बहाना बताया गया है कि चुनाव के कारण जांच में देरी हुई है! सूत्रों की मानें तो अंदर ही अंदर कुछ जांच हुई थी जिसकी सूचना शिकायतकर्ता आदि को नहीं दी गई! वहीं इसके बाद वन निगम के अधिकारियों की नींद खुली तो आननफानन में बगैर लेवलिंग कराए ही वृक्षारोपण कराया जा रहा है नाले और बीहड़ जैसी मानवकृत भूसंरचना मे वृक्षारोपण क्या छिपाने के मंसूबे से कराया जा रहा है वन निगम के डीएम और डिप्टी रेंजर ही जानें। वहीं बताया गया कि एसईसीएल सोहागपुर क्षेत्र के पर्यावरण विभाग ने और वन निगम ने इस आशय के आदेश भी जारी किए हैं कि अब बगैर समतलीकरण के वृक्षारोपण नहीं होगा, लेकिन जो लापरवाहियां पूर्व में की जा चुकी हैं जबतक उनको नहीं सुधारा जाएगा तब तक सभी आदेश-निर्देश दिखावटी हैं! एसईसीएल सोहागपुर क्षेत्र के एक बड़े क्षेत्रीय अधिकारी एक कार्यक्रम में माइक पकड़े बोलते हैं कि मैंने सोहागपुर क्षेत्र में प्रबंधन के 100 करोड़ बचाए हैं, जिसपर जानकारों का कहना है कि जब श्रमिक हित, जन हित और पर्यावरण हित के कार्य नहीं किए जाएंगे तो 100 करोड़ क्या 200 करोड़ भी बच सकते हैं।

सोहागपुर प्रबंधन कागज़ी किले बनाने से नहीं चूक रही है, लेकिन असलियत तो ज़मीन पर स्पष्ट दिख रही है। इसलिए शिकायत में भी वरिष्ठ अधिकारियों और शिकायतकर्ता के उपस्थित में भौतिक निरीक्षण की मांग की गई है, जिससे सभी संबंधित जिम्मेदार सकपकाए हुए हैं।

{पर्यावरणीय संकट के मुहाने मे खड़ा बेम्हौरी क्षेत्र}

मालुम हो कि हैवी ब्लास्टिंग से पूरा बेम्हौरी, गरफंदिया क्षेत्र रोज दहलता है, हैवी ब्लास्टिंग से क्षेत्र का भूजल स्तर बुरी तरह प्रभावित हुआ है, कई ग्रामीणों के घरों मे दरारें आ गई हैं। ओवी का ढेर लगाने में ऊंचाई और चौड़ाई को लेकर तय शर्तों का पालन नहीं किया जाता, जिससे ओवी कि ढ़ेर पर्वत की तरह हो चुके हैं, जिससे मोबाईल नेटवर्क कनेक्टिविटी और इंटरनेट स्पीड में दिक्कतों का सामना आसपास के ग्रामीणों को करना पड़ता है! यहां भूअधिग्रहण अधिनियम, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, पर्यावरण एवं वन्य जीव संरक्षण अधिनियम आदि सभी संबंधित कानून ठेंगे पर हैं।

{जंगल नष्ट होने से वन्य जीव खदान क्षेत्र में आ रहे हैं}

मालुम हो कि वन नष्ट हो जाने के कारण इस वन क्षेत्र के हिरण, खरगोश, बारहसिंगा आदि वन्य प्राणी कोयला खदानों के आसपास भटक कर आ जाते हैं। बीते अप्रैल में अमलाई ओसीएम में एक बारहसिंगा की मौत काॅलरी के ही किसी ट्रक की चपेट में आ जाने से हुई थी, जिसे वन विभाग के स्थानीय अधिकारियों के साथ मिलकर आनन-फानन मे आज्ञात वाहन से ठोकर लगा बताकर मामले को दबा दिया गया, जिस संबंध में कोयलांचल में चर्चा है की बारहसिंगा के हत्या के मामले में लाखों रुपए की चढ़ोत्तरी हुई थी! यदि यह चर्चा सही नहीं है तो मामले की प्रेस रिलीज वन विभाग क्यों जारी नहीं किया? और सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि प्रबंधन के प्रतिबंधित क्षेत्र के अंदर अज्ञात वाहन से ठोकर कैसे लग सकता है? इस संबंध में चर्चाएं हैं कि एक चर्चित ठेका कंपनी के कुछ मांसाहारी कर्मचारी अपने खाने के लिए बारहसिंगा मरवाये होंगे लेकिन हल्ला हो जाने के कारण मामले को दुर्घटना बता दिया गया? वहीं यह भी कहा जा रहा कि प्रतिबंधित क्षेत्र में अज्ञात बड़े वाहन घुस ही नहीं सकतें तो अज्ञात वाहन से ठोकर कैसे लग सकती है? इस तरह के कई प्रश्न हैं जिसे प्रबंधन और वन निगम और वन विभाग छुपाने में लगा है।

{इनका कहना है}

मै संबंधित डिप्टी रेंजर से बात करता हुं, बगैर समतली करण कराए वृक्षारोपण करना नियम विरुद्ध होगा, मैं पहले इस मामले की खबर लेता हुं।

अनिल चोपड़ा

(डिविजनल मैनेजर, वन विकास निगम, उमरिया)

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