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…. तो मेडिकल कॉलेज न होता तो प्रसूता कि चली जाती…….??? जिला अस्पताल मे दो घंटे तड़पने के बाद मेडिकल कॉलेज मे हुआ प्रसव, दोनों सुरक्षित

 


शहडोल। सादिक खान 

शहडोल। बाहरी रंग रोगन एवं साज सज्जा के लिए आधा दर्जन से अधिक सर्टिफिकेट से सुशोभित संभाग के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल जिला चिकित्सालय मे शुक्रवार रात दो घंटे तक उपचार मे तड़पने के बाद, प्रसूता को परिजनों द्वारा मेडिकल कॉलेज ले जाया गया। जहाँ रात्रि लगभग 11 बजकर 30 मिनट पर उसका सुरक्षित प्रसव कराया गया। इससे पहले वह प्रसूता जिला अस्पताल की अव्यवस्था का दो घंटे तक दंश झेलती रही, लेकिन अस्पताल मे। मौजूद किसी कर्मचारी की मानवीय संवेदनाए सामने नहीं आई। अव्यवस्था का आलम यह था कि जिस डॉक्टर की दोपहर पाली मे रात्रि 8 बजे तक प्रसूति वार्ड मे ड्यूटी थीं वह नादारत थीं। वहीं जिस चिकित्सक की रात्रि 8 बजे से ड्यूटी थीं वह सवा घंटे देर से रात्रि 9 बजकर 15 मिनट बजे ड्यूटी पर पहुचे। लेकिन उन्होंने भी अपने कर्तव्यों से विमुख होकर वार्ड मे दर्द से कराह रही प्रसूता की नब्ज़ टटोलने तक की ज़हमत नहीं उठाई और उसे मेडिकल कॉलेज रेफर कर आराम फरमाना ज्यादा मुनासिब समझा। ऐसी स्थिति मे यह सवाल उठ रहा है कि अगर मेडिकल कॉलेज न होता तो प्रसूता कि जान को खतरा था।


कल क्या हुआ था प्रसूता के साथ 


विदित हो कि शुक्रवार की शाम जिला अस्पताल के प्रस्तुति वार्ड मे गोहपारु क्षेत्र के ग्राम बरेली निवासी चंद्रावती, अपने घर से 35 किलोमीटर का ऑटो मे सफऱ तय कर अस्पताल पहुंची।क्योकि उसे गोहपारु से सरकारी एम्बुलेंस नसीब नहीं हुई। लेकिन जिला अस्पताल आने के बाद उस समय ड्यूटी मे कोई भी डॉक्टर उक्त वार्ड मे मौजूद नहीं था। प्रसूता 2 घंटे से दर्द से तड़प रही थी लेकिन उसे देखने के लिए कोई नहीं आया। वह लगभग आठ माह कि गर्भवती थीं। समय से पहले ही तेज प्रसव पीड़ा हो रही थीं। जिस कारण उसे बड़ी ही उम्मीद के साथ जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल लेकर आए थे। लेकिन यहाँ आने के बाद दो घंटे तक न तो प्रसूति वार्ड मे कोई डॉक्टर मिला और न ही वहाँ मौजूद अस्पताल के दूसरे स्टाफ ने उस महिला के दर्द पीड़ा को महसूस हुआ। महिला को अस्पताल कर्मचारियो ने 2 घंटे तक अकेले तड़पने के लिए छोड़ दिया। परिजनों का कहना है कि 7 बजे वह जिला अस्पताल शहडोल पहुंचे थे प्रसूता महिला को काफ़ी दर्द हो रहा था लेकिन 2 घंटे तक वहां डॉक्टर मौजूद नहीं था। रात 9 बजकर 15 बजे डॉक्टर तिगेंद्र सिंह आए। कुछ उम्मीद जागी कि शायद अब दर्द से कराह रही महिला का इलाज हो पाएगा। लेकिन धरती मे भगवान् रूप मे जाने, जाने वाले डॉक्टर ने महिला को देखना तक मुनासिब नहीं समझा और तुरंत उसे मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया गया था। हलाकि मामला सामने आने के बाद रात्रि मे ड्यूटी मे आने वाले डॉक्टर तिगेंद्र सिंह का कहना है कि मैंने मरीज को देखा था लेकिन उसकी स्थिति यहाँ प्रसव के लायक मुझे नहीं दिखी इसलिए हायर सेंटर शहडोल मे होने के कारण उसे मैंने रेफर किया था। वहीं 8 बजे तक जिस डॉक्ट की ड्यूटी थी, उसकी भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहें है कि ज़ब यहाँ प्रसव कराने की स्थिति नहीं थीं तो उसे दो घंटे तक जिला अस्पताल मे तड़पने के लिए क्यों छोड़ दिया गया था। बहरहाल अब अस्पताल के डॉक्टर अपनी सफाई पेश करते नजर आ रहे है। 


सीएस का नहीं रहा कंट्रोल?


कहने को तो सिविल सर्जन जिला अस्पताल का मुखिया होता है, जिसका नियंत्रण अस्पताल की व्यवस्था के साथ साथ सभी वार्डो मे चिकित्सीय सुविधाओ पर भी होना चाहिए लेकिन आए दिन मरीजों के साथ इस प्रकार के मामले पेश होने से ऐसा लग रहा है कि मातहत कर्मचारियो के ऊपर से नियंत्रण हट गया है। वहीं दूसरी ओर दबी जुबान से यह बात भी सुनने को मिल रही है कि दंत रोग विशेषज्ञ को जब से सिविल सर्जन के रूप मे पदस्थ किया गया है, अस्पताल के अन्य विशेषज्ञ चिकित्सको का उनसे ताल मेल नहीं बैठ पा रहा है। बहरहाल कारण जो भी हो लेकिन इस अव्यवस्था के कारण मरीजों को परेशानी उठानी पड़ रही है।

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