शहडोल। सादिक खान
शहडोल। जिला अस्पताल की स्वास्थ्य व्यवस्था इन दिनों पूरी तरीके से चरमरा गई है। अस्पताल के डॉक्टर एवं स्टाफ की मानवता भी खत्म होती जा रही है। इस मानवहीनता का प्रत्यक्ष प्रमाण शुक्रवार की शाम जिला अस्पताल के प्रस्तुति वार्ड में देखने को मिला। जहाँ गोहपारु क्षेत्र के ग्राम बरेली निवासी चंद्रावती, अपने घर से 35 किलोमीटर का ऑटो मे सफऱ तय कर अस्पताल पहुंची।क्योकि उसे गोहपारु से सरकारी एम्बुलेंस नसीब नहीं हुई। लेकिन जिला अस्पताल आने के बाद उस समय ड्यूटी मे कोई भी डॉक्टर उक्त वार्ड मे मौजूद नहीं था। प्रसूता 2 घंटे से दर्द से तड़प रही थी लेकिन उसे देखने के लिए कोई नहीं आया। वह लगभग आठ माह कि गर्भवती थीं। समय से पहले ही तेज प्रसव पीड़ा हो रही थीं। जिस कारण उसे बड़ी ही उम्मीद के साथ जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल लेकर आए थे। लेकिन यहाँ आने के बाद दो घंटे तक न तो प्रसूति वार्ड मे कोई डॉक्टर मिला और न ही वहाँ मौजूद अस्पताल के दूसरे स्टाफ ने उस महिला के दर्द पीड़ा को महसूस हुआ। महिला को अस्पताल कर्मचारियो ने 2 घंटे तक अकेले तड़पने के लिए छोड़ दिया। परिजनों का कहना है कि 7 बजे वह जिला अस्पताल शहडोल पहुंचे थे प्रसूता महिला को काफ़ी दर्द हो रहा था लेकिन 2 घंटे तक वहां डॉक्टर मौजूद नहीं था। रात 9 बजकर 15 बजे एक डॉक्टर आए। कुछ उम्मीद जागी कि शायद अब दर्द से कराह रही महिला का इलाज हो पाएगा। लेकिन धरती मे भगवान् रूप मे जाने, जाने वाले डॉक्टर ने महिला को देखना तक मुनासिब नहीं समझा और तुरंत उसे मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर ली।
सिर्फ सर्टिफिकेट पर संतुष्टि, उपचार मे फिसड्डी
जिला अस्पताल की अव्यवस्था जग जाहिर है। अस्पताल के मुखिया सिविल सर्जन का ध्यान केवल सर्टिफिकेट हासिल कर वाह वाही लूटने तक ही सिमटा नजर आ रहा है। मरीजों के उपचार मे जिला अस्पताल फिसड्डी होते जा रहा है। आए दिन प्रसूति वार्ड मे ऐसे मामले सामने आते रहते है। ज़ब मरीज को बिना देखे ही उसे मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया जाता है। इतना ही नहीं कई बार तो स्वयं ही अस्पताल कर्मियों द्वारा यह लिखकर मरीजों से कागज़ पर हस्ताक्षर करवा लिया जाता है कि वह अपने मरीज को अपनी मर्जी से अन्यत्र उपचार के लिए लेकर जा रहें है। आलम यह है दिनों दिन जिला अस्पताल मात्र एक सफ़ेद हाथी जैसा साबित होते जा रहा है।
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